Monday, November 15, 2010

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सन २०११ के पदम् पुरस्कार हेतु नामित.
हास्य कवि / व्यंग्यकार / गीतकार / मंच संचालक /  कवि सम्मलेन / विभिन्न शासकीय पत्रिकाओं / स्मारिका  के  संपादक मंडल में विगत ३० वर्षों से सक्रीय

Thursday, November 4, 2010

महामहिम राष्ट्रपति महोदय डॉ ए पी जे अब्दुल कलम जी और माननीय प्रधान मंत्री महोदय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी का सन्देश





मेरी द्वारा प्रथम पुस्तक "नया सबेरा " जो की आज से १० साल पहले  लिखी गयी थी जिसके लिए महामहिम राष्ट्रपति महोदय डॉ ए पी जे अब्दुल कलम जी और माननीय प्रधान मंत्री महोदय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी का सन्देश प्राप्त हुआ है अभी भी अपने गौरव पूर्ण मक़ाम के इंतजार में है  

केन्द्रीय जेल में कार्यक्रम





केन्द्रीय जेल में कार्यक्रम जिसमे पीछे की पंक्ति में जेल अधीक्षक श्री राजेंद्र रंजन गायकवाड जी, विधायक महोदय श्री कमल  भान जी और जिले के  जाने  माने हस्ती बैठे हैं

वक्त

 पुस्तक वक्त जो की अभी पांडुलिपि की शक्ल मे है की कुछ पंक्तियाँ-

कठोर कर्म की गर्मी आगे,
कठिन वक्त पिघलता है,
वक्त से पहले किस्मत से ज़्यादा
कर्मवीर को मिलता है.


श्रॄष्टी जिसकी न्यायालय है,
वक्त बना है न्यायाधीश.
पर ब्रह्म परमेश्वर भी ,
जहाँ झुकाते अपना शीश.


समय, काल , मियाद अवसर ,
सब वक्त के पर्याय हैं,
हर शब्द तोड़कर देखा तब,
सब अपने में अध्याय हैं.


हर ताज बना है सर के खातिर ,
हर सर नहीं है ताज को.
पर वक्त तो बेताज है
नहीं ताज मोहताज को.


सतयुग मे श्री हरीशचंद्र को,
वक्त ने राजा बनवाया,
जानें कहाँ क्या भूल हुई,
की डोम के हाथो. बिकवाया.


शिव शंकर कैलाश पति,
महादेव कहलाते थे,
वक्त की ही मार थी,
जो सती-सती चिल्लाते थे.


रामा और कृष्णा भी प्यारे
वक्त के अधीन हुए.
तीन लोक की शक्ति थी,
फिर भी कितने दिन हुए.

संत कवि पवन दीवान जी द्वारा छत्तीसगढी कविता के लिए अस्मिता शंखनाद पुरस्कार

samanya janakri




My Blog-
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My Interview(Recording) in Raipur Doordarshan , Raipur Chhattisharh
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Chhattisgarh ke sahityakar-
http://chhattisgarhaaj.com/readstory.php?id2=446&rootid=39&catid=559&parent_id=39&level=1


http://cg.hindusthansamachar.net/breaking-news/2145   प्रेस नोट---
छग-अम्बिकापुर: राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रति न्याय हो-रामकुमार वर्मा

छग-अम्बिकापुर: राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रति न्याय हो-रामकुमार वर्मा

अम्बिकापुर, 11 सितंबर (हि.स.)। छत्तीसगढ़ साहित्य के प्रदेश सचिव रामकुमार वर्मा ने एक प्रेस नोट जारी करते हुए राष्ट्रभाषा हिन्दी के साथ-साथ न्याय करने की मांग करते हुए प्रेस नोट के जरिए कहा है कि हमारे देश की शान व पहचान हिन्दी भाषा है, जो देश के कोने-कोने में सर्वथा एवं व्यापक रूप से सम्मानित है।
किसी भी भाषा के संबंध में चर्चा करे तो भाषा के दो पृथक भाग होते है, जिसमें प्रथम भाग-अक्षर एवं द्वित्तीय भाग अंक के रूप में हिन्दी भी दो भाग में है। प्रथम (क,ख,ग,घ,ड…………..) एवं द्वित्तीय (१,२,३,४,५,६,७,८,९,१०,………..)। आज कष्टकारक बात यह है कि हमारे देश की गौरवशाली भाषा, हमारे सामने हमारे द्वारा नष्ट हो रही है और हम इस क्षेत्र में गंभरतापुर्वक विचार तक नही कर पा रहे है। उन्होनं कि आज पुरे देश में वन,टू,थी्र, फोर लिखो व एक, दो,तीन,चार,बोलो की प्रथा चल लागू हो चुकी है। आज देश के लगभग सारे अखबार,पत्र,पत्रिकाएं, पूस्तक-कापी, रेडियो,टी.वी., मोबाइल, गाडि़यों के नम्बर, प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया, समस्त शासकीय और अद्र्धशासकीय फार्म सहित आम व खास जनों द्वारा अंग्रेजी अंको का ही प्रयोग होता है, जबकि साल में एक बार हमारे देश में लाखों रूपये खर्च कर हिन्दी दिवस मनाया जाता है, जिसमें हिन्दी के संबंध में न जाने कितनी बाते होती है। उन्होंंने कहा कि उस दिन भारत मॉ के आखों में आसू होते है। कार्यालयों/बैंकोमें लिखा होता है कि यदि आप हिन्दी में काम करें तो हमें प्रसन्नता होगी। जबकि एक भी फार्म ऐसे नही है जिनमें हिन्दी हो। आज देश की शैक्षणिक संस्थाओ ंको निर्देश प्राप्त है कि वन,टू,थ्री,फोर लिखो और उसे एक,दो,तीन,चार, बोलो। इस संबंध में मेरे द्वारा कई बार असफल प्रयास किया गया,कितने ही मंचो में मै अपने उद्गार व्यक्त किया हूॅ। मालूम हो कि आज कोई भी बच्चा हिन्दी अंकों से परिचित नही है। एक दिन हम अपने साथ अपनी हिन्दी को भी साथ ले चले जाएगे, तो इतिहास के पन्नों में कोहिनूर हीरा, लाल किले में फहराया गया  स्वतंत्र भारत का प्रथम तिरंगा,बापू क चश्में की भंाति हमारी हिन्दी भी कतार में खड़ी दिखाई देगी। अत:हम जिसे बचा सकते है, उसे बचाना हमारा दायित्व व धर्म है। उन्हों यह भी कहा कि मै किसी का विरोधी नही, पर मेरा यह मानना है कि हम अपनी मां का सम्मान करने के बाद ही किसी बुजुर्ग महिला का सम्मान करते तो वह सम्मानित व हम गौरवान्वित होगें। उन्होंंने पत्र के माध्यम से कहा कि मै आपसे निवेदन करता हु कि अगर आप अंग्रेजी भाषा का उपयोग करना चाहते है तो दिल खोलकर करिये, क्योंकि किसी भी भाषा, कला को सीखना, उसकी जानकारी रखना अच्छी बात होती है पर हिन्दी के अंकों को विलुप्त होने से बचाना भी हमारी जिम्मेवारी होगी।
आप जो भी हिन्दी में लिख रहे है, तो शब्दों के साथ अंक भी हिन्दी के ही प्रयोग करें। इसके साथ ही मै अपना व्यक्तिगत अनुभव बताना चाहॅुगां कि जब मैने हिंदी के अंको को बचाने के बारे में सोचा और उसे लिखना शुरू किया तो, मुझो अनुभव हुआ कि मै साक्षात भारत मां की गोद में बैठा हॅुं। जिससे मुझो शांति और सुकुन का एहसास हो रहा। आप भी इसे महसूस करें। आज इसे बचाने के लिए एक मुहिम चालाने व एक जन आंदोलन की आवश्यकता महसूश हो रही है। इसके लिये आपको किसी धरने में बैठने या अनशन करने की आवश्कता नह हैं। बस आने वाली पीिढयों को हिन्दी के अंको को समझाायें। अपने लेटरपेड,विजिटिंग कार्ड, अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं, कैलेण्डर, आमंत्रण पत्र, पूस्तकों कापियों, फार्म, इलेक्ट्रानिक व प्रिंट मीडिया, में यथासंभव हिन्दी के अंकों का उपयोग करें। जनसमूह जनमानस को प्रेरित करें। अगामी ठोस कदम हेतु मेरा मार्गदर्शन करेें।
हिन्दुस्थान समाचार, तरूण अम्बष्ट, गेवेन्द्र कुमार